Wednesday, January 24, 2018

अध्ययन के स्थान पर अपराध का केंद्र क्यों बन रहे हैं स्कूल ?


  क्या हमारे देश के नामी-गिरामी स्कूल भी धीरे धीरे अमेरिकी तर्ज पर संस्कृति और संस्कारों से विचलन का माध्यम बन रहे हैं? आखिर क्या वजह है कि पठन-पाठन का केंद्र विद्यालयों में अराजकता बढ़ रही है और अध्ययन का स्थान अपराध ले रहा है? स्कूल के बस्तों में किताबों के साथ पेन-पेन्सिल की जगह चाकू-पिस्तौल नजर आने लगे हैं और मोबाइल फोन ज्ञान का दरवाजा खोलने की बजाए अपसंस्कृति का खिलौना बन रहे हैं? ऐसे कई सवाल है जो इन दिनों सुरसा के मुंह की तरह हमारे सामने अपना आकर बढ़ाते जा रहे हैं और हम उनका उत्तर खोजने के स्थान पर लीपापोती में या फिर इन्हें सामान्य आपराधिक घटना मानकर क़ानूनी प्रक्रिया के पालन भर से संतुष्ट हैं।
पाश्चात्य संस्कृति से परिपूर्ण विश्व में विकास और प्रगति के नए आयामों ने हमें एक अलग मुकाम की ओर पहुँचाया है।इसने एक ओर वसुधैव कुटुम्बकम को सार्थक किया है वहीँ कई बुरी आदतों को भी जन्म दिया है। धीरे-धीरे इस विकास की अंधी दौड़ ने हमे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है,अब आप सोचेंगे जब सब कुछ प्रगति के उच्चतम स्तर पर है, तो अब किस ओर सोचने की जरुरत है। बेशक प्रगति ने विश्व के सभी देशों को मिलकर आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया है,पर  अमेरिका जैसे कई देशों में चंहु ओर तकनीकी प्रगति के बीच वहां के स्कूलों में बढ़ रहे अपराधिक ग्राफ ने हमें चिंता में डाल दिया है। आजकल आए दिन वहां के स्कूलों में गोलीबारी की घटना ने कहीं न कहीं  सर्वसुविधा सम्पन्न स्कूलों के माहौल पर प्रश्नचिन्ह लगाया है,वो भी उन विकसित देशों के स्कूलों पर जो भारत जैसे विकासशील देशों के आदर्श है क्योंकि उसी तर्ज पर विकासशील देशों में भी सर्वसुविधायुक्त स्कूलों की अवधारणा ने जन्म लिया और फिर हमारी नकलची प्रवृत्ति ने पाश्चात्यीकरण को पूरी तरह अपनाते हुए अपनी संस्कृति को पीछे छोडकर विकास के इस नए प्रारूप को अपनाना शुरू कर दिया। सरकारी स्कूलों को दरकिनार करते हुए पब्लिक स्कूलों का जाल शहरों से लेकर ग्रामों तक फैला दिया। इस विस्तार ने एक ओर जहाँ शिक्षा के माध्यम के तौर पर अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा देते हुए संस्कृत-हिंदी जैसी हमारी मातृभाषा को अपमान करने का तरीका बना दिया।मतलब अब जिसे अंग्रेजी नही आती उसे तिरस्कृत नजरों से देखा जाता,तो कही ना कही अपमान सा ही तो है,पर क्या ये माहौल हमें  वाकई हमारे लक्ष्य तक पहुंचाएगा? हमने भी अमेरिका जैसे देश की शिक्षा प्रणाली को अपनाते हुए इस आधुनिकता के अनेक उदाहरण देखे है,हमारे स्कूलों की अवधारणा भी बदल रही है आज हम अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में डाल रहे है,वो भी ये सोचकर कि इन स्कूलों के माहौल में रहकर हमारे बच्चे प्रगति के पथ पर तीव्र गति से बढ़ेंगे और हमारा  भी अपने दोस्तों और समाज में अपना रुतबा बढ़ा सकेंगे,सरकारी स्कूलों में तो नीची जाति और गरीबों लोगों के बच्चे पढ़ते है,आज पब्लिक स्कूल में पढ़ाना उच्च जीवन स्तर का आइना है।चाहे फिर उसके लिय कुछ भी दांव प  संस्कृति,सभ्यता,परिवार,संस्कार  सब को  दांव पर लगा रहे है,जहाँ सरकारी स्कूल आपको परिवार का महत्व संस्कृति,संस्कार सिखाने में अव्वल थे।वही पब्लिक स्कूलों ने इस ओर से आँखेंमूँद रखी है.  
                    अगर हम इस ओर सोचे तो क्या केवल हमारे आसपास का माहौल, हमारे बच्चों की संगत, सोशल मीडिया का प्रभाव ही इस आधुनिकता को आगे बढ़ा रहे है,या कुछ और भी है तो वो है हमारी सोच, हम जैसी सोच लेकर चलते है वही हमारे व्यवहार में नजर आता है,आज के समय में सम्मान और नैतिकता का ह्रास हो रहा है,आज शिष्य गुरुओं को उचित दर्जा नही दे रहे और ना गुरु शिष्य को,समाज में अपनत्व, प्यार,सम्मान का कोई मोल नही,इनके स्थान पर प्रतिस्पर्धा,रागद्वेष दुश्मनी,दिखाई दे रहे,इस माहौल के लिए हम किसे दोष दे सकते है,अपने आप को,अपने बच्चोंको,  समाज को,स्कूलों को,सोशल मीडिया को। विद्यालय ज्ञान का मन्दिर है, जहाँ हमें एक नेक और आदर्श नागरिक बनने की सीख मिलती है,पर क्या आज हमारे विद्यालय इस बात को पूर्ण कर रहे? शायद नही तो स्कूलों में हो रही दुखद घटनाओं ने हमें ध्यान दिलाया है, हाल ही में गुरुग्राम में प्रदुम्न हत्याकांड, शिक्षकों द्वारा छात्राओं की अस्मिता से छेड़छाड़, मोबाईल का गलत उपयोग,छात्रों का एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में तेजाब जैसी खतरनाक चीज़ों का इस्तेमाल, स्कूल में ड्रग्स की बढ़ती लत,क्या इन सबके बाद आप और हम जैसे लोग विद्यालय को असामजिक तत्व का केंद्र ना कहे तो क्या कहे, किसी विद्यालय में एक छात्र ने प्राचार्य को गोली मारकर घायल कर दिया, इसी माहौल में परवरिश शिक्षा पाए बच्चे ही आगे जाकर अपराधों की नयी फेहरिस्त बढ़ाते है,तो क्या हमारा फ़र्ज़ नही बनता कि हम इस ओर सभी का ध्यान आकर्षित करें, क्योंकि एक समृद्ध राष्ट्र के जागरूक नागरिक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य है कि देश में जितने भी विद्यालयों में शिक्षा का मापदंड उचित नही है,वहां सुधार के प्रयास युद्धस्तर पर चलाये जाए, स्कूलों में सुरक्षा के साधनों का प्रबंध,छात्रों के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाए,प्रतियोगिता केवल विषयगत हो ना कि वो एक दूसरे से इर्ष्या का माध्यम बने,स्कूल चाहे सरकारी हो या पब्लिक दोनों में सीसीटीवी का इस्तेमाल सुरक्षा के लिए हो,शिक्षकों का सभी छात्रों (चाहे वो लड़का हो या लड़की) के साथ समानता का व्यवहार हो,छात्रों के अभिभावकों से समय समय पर मिलकर विद्यार्थियों के बारे में अपना और उनके विचारों आकलन करते रहे, बच्चों के लिए स्कूलों में परामर्शक भी नियुक्त करें,जो छात्रों की स्कूली समस्या का समाधान स्कूल में ही करवा दे,शिक्षकों को भी समय समय पर प्रशिक्षण दिलाकर उनकी क्षमताओं में वृद्धि भीकराए,स्कूल अपने परिसर में  किसी भी अवांछित स्टाल या दुकानों (जैसे  शराब, पान चाय) को शुरू करने का लाइसेंस ना दें, स्कूल में शिक्षकों  को नियुक्त करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी भी ले लें,छात्रों और शिक्षकों के लिए केन्टीन की सुविधा भी हो।इस तरह हम अपने विद्यालयों को एक आदर्श विद्यालय की श्रेणी में ला पायेंगे,और देश को एक उत्कृष्ट नागरिक और सुलझा हुआ समाज दे पाएंगे

1 comment:

  1. Bahut hi achcha likha hai aapne. Achche shavdo ka chayan aur bhashashaili kafi prabhavshali hai .

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