Wednesday, April 20, 2011

राजा-महाराजाओं सा व्यवहार करती लोकतान्त्रिक सरकारें....

जब भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीता तो केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों ने अपने खजाने खोल दिए और विश्वविजेता खिलाडियों पर  अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कौंसिल(आईसीसी) की तरह धन वर्षा शुरू कर दी .सभी राज्य एक दूसरे से आगे निकालने की होड़ में लग गए.कौन किस से ज़्यादा इनाम देता है.                                                   
सरकार की दरियादिली पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती और न ही विजेताओं के सम्मान पर क्योंकि देश का नाम रोशन करने वालों को तो प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए.लेकिन सरकार ने अपनी इस दरियादिली के लिए पैसा जहाँ से निकाला उस पर मुझे घनघोर आपाती है और मुझे ही क्या देश के हर नागरिक को होनी चाहिए.दरअसल सरकारों ने शिक्षा पर खर्च होने वाले पैसे से क्रिकेटरों को मालामाल कर दिया. क्या हमारा देश पूर्ण साक्षर है? अगर कुछ साक्षर राज्यों के आधार पर भी कहें तो भी १०० फीसदी साक्षरता का लक्ष्य पाने में समय लगेगा. तो फिर इतनी आवश्यक और महत्वपूर्ण योजना के पैसों को खिलाडियों को इनाम के तौर पर देना कहाँ तक सही है?आज हम सभी चाहते है.कि शिक्षा की कमी सहित देश की तमाम वर्तमान समस्याओं को जल्द से जल्द हल किया जाए और आने वाले समय की आवश्यकताओं और समस्याओं के हल के लिए समय रहते देश को तैयार किया जाए.पर अगर इस तरह धन का अपव्यय होगा तो कहाँ तक वर्तमान की स्थिति सुधार पाएंगे,   कहाँ तक भविष्य के लिए तैयार होंगे.इसलिए कम से कम सरकारों को  इस तरह के इनामों की घोषणा  करने से पहले ये सोचने की ज़रूरत है कि वो इनका इन्तेजाम कहाँ से करेगी. क्यों नहीं हम अपनी चादर के अनुसार ही पैर पसारें.क्यों हम केवल भेड़ चाल में शामिल होकर अपनी ही पीठ थपथपाने लगते हैं!.एक राज्य सरकार अगर १ करोड का इनाम दे रही है.तो जरुरी नहीं कि हम उसकी नक़ल करे या उससे भी बढ़कर दिलेरी दिखाएँ.हम अपनी आर्थिक हालात के अनुसार उससे कम इनाम भी दे देंगे तो भी कोई बात नहीं क्योंकि इनाम तो इनाम है वह  १० रुपये भी हो सकता है और ५० हज़ार भी और कई करोड़ भी.लेकिन हम अपनी योजना और विकास की राशि महज एक खेल पर क्यों लुटाएं?अगर हैसियत है तो ही दे.दूसरे की उधारी पर इनाम सम्मान की जगह अपमान स्वरुप हो जाता है.देश की योजनाओ में वही पैसा लगाया जाता है जो हम सभी नागरिक आयकर या अन्य करों के रूप में सरकार को देते हैं. इस तरह के कार्य ने यह जाहिर कर दिया है. कि सरकार को नागरिकों की गाढे पसीने और मेहनत से कमाए गए पैसे से हुई आय का कितना मोल है?क्या सरकारों का यह रवैया हमें आयकर के भुगतान से बचने की ओर प्रेरित नहीं करता? अगर सारे नागरिक आयकर जैसे तमाम करों का भुगतान न करने का फैसला ले लेंगे तो हो गया देश का विकास और हमारा देश विकासशील तो दूर अविकसित ही रह जायेगा और पूर्ण विकसित देश बनाने कीई ख्वाहिश मात्र सपना बनकर ही  रह जायेगा.

2 comments:

  1. मनीषा जी,

    आरजू चाँद सी निखर,
    जिन्‍दगी रौशनी से भर जाए,
    बारिशें हो वहाँ वे खुशियों की,
    जिस तरफ आपकी नजर जाए।
    जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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    छलावा फिर औरत के साथ!
    सुंदरियाँ कर रही हैं छेड़छाड़।

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  2. मनीषा जी, कृपया अपने ब्‍लॉग पर फॉलोवर विजेट जोड़ लें, इससे पाठकों को आपके ब्‍लॉग तक पहुंचने में सुविधा होगी।

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