Saturday, November 13, 2010

पदक नहीं दोस्ती का प्रतीक बने एशियाई खेल

चीन के ग्वान्झु शहर में १९ वे एशियाई खेलों  की  रंगारंग शुरुआत के साथ ही  एक बार फिर एशिया के ४५ देशों में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गयी है.जिनमे ६०५ सदस्यीय भारतीय दल भी शामिल है. .इन खेलो में वर्चस्व की लड़ाई को केवल प्रतियोगी नज़र से ही ना देखें बल्कि इन्हें सभी देशों के बीच मित्रवत सम्बन्ध स्थापित करने में   बडी भूमिका के तौर पर देखा जाना चाहिए..खेल सदैव ही दोस्ती प्रगाढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. आज भारत का प्रयास सभी एशियाई देशों के साथ मजबूत सम्बन्ध जोड़ना है. पर क्या केवल भारत का एकल प्रयास काफी है.  इसलिए सभी देशों का यह फ़र्ज़ बनता है कि इन खेलों में खिलाडी भावना का प्रदर्शन ही उनका लक्ष्य ना हो बल्कि  सभी इनके माध्यम से परस्पर सहयोग, सामंजस्य, समर्पण,सौहार्द का वातावरण बना सकते है. आज सभी एशियाई देश अनेक समस्याओं से दोचार हो रहे है. जिनमे प्राकृतिक आपदाओं के साथ आतंकी हमले भी इन देशों की विकास की गति को अवरुद्ध बना रहे है. प्राकृतिक आपदा से तो निपटने में हम सफल हो भी जाते पर वर्तमान में आतंकी  हमलों का तोड़ अभी भी हम नहीं निकल पाए है जहाँ चीन तिब्बत को लेकर परेशान है, कश्मीर को लेकर पाकिस्तान हैरान है.नेपाल मधेशियों और माओवादियों में उलझा है.  इसलिए  जरुरत है मिलकर प्रयास करने की जिसमे केवल वादे करने या सहयोग का आश्वासन ही काफी नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर विकसित देशों को भी सहयोग करने के लिए प्रेरित करे. आज एशियाई देशों की जरुरत है कि वे सभी एक दूसरे के साथ मिलकर खेलों को माध्यम बनाकर दोस्ती के नए अध्याय की इबारत लिखे. इस बारे में खिलाडियों से ज़्यादा जिम्मेदारी नेताओं और नागरिकों की है. हमारे नेता केवल विचारों का आदान प्रदान ही ना करे बल्कि योजनाओ को अमलीजामा पहनाने में भी अग्रणी  भूमिका निभाए. इस तरह के आयोजनों में भाग लेकर एक-दूसरे की भावनाओ का सम्मान करे. बटु इस देशों के नागरिक ये हमारा भी फ़र्ज़ है कि अपने नेताओ की हौसलाफजाई करे ताकि वे नए प्रयासों में निरंतर नए आयाम जोड़े. जैसे भारत ने सभी देशों के बीच राष्ट्रमंडल खेलों के द्वारा इन प्रयासों को एक दिशा दी.अब चीन उनमे एक और अध्याय जोड़ने की ओर अग्रसर है.  हम सभी को उस प्रयास का सम्मान करना चाहिए.और खेल तथा खिलाडी भावना के साथ आगे बढ़ना चाहिए.यही प्रयास हमारी समस्याओं के समाधान का एक उचित तरीका होगा जो सभी को मित्रवत संबंधों की ऐसी डोर बनेगा जिसे कोई भी तोड़ ना पायेगा शायद तब पाकिस्तान भी भारत के इरादों को सही मानकर पुरानी बाते भूलकर नए अध्याय की शुरुआत करेगा तब किसी भी देश को अपनी बात अपनी बात कहने के लिए किसी मध्यस्थ की जरुरत नहीं होगी  इसलिए इन खेल आयोजनों की सफलता को  पदकों की संख्या से ज़्यादा दोस्ती के रिश्तों में मजबूती के रूप में देखना अधिक उचित होगा ...........        

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