Saturday, November 27, 2010

कलयुग की सत्यनारायण कथा ....

   बचपन से हम सत्यनारायण की कथा सुनते आ रहे हैं.इस कथा में वैसे तो पांच अध्याय हैं और कई पात्रों के जरिये भगवान सत्यनारायण की महिमा का बखान किया गया है लेकिन आज के दौर में भी इस कथा में सबसे ज़्यादा चर्चा लीलावती और कलावती नामक दो महिलाओं की होती है.शास्त्रों के मुताबिक आज यानि कलयुग में एक बार फिर कलावती चर्चा में है.फर्क केवल इतना है कि मूल कथा में भगवान सत्यनारायण लीलावती-कलावती को दंड देते हैं परन्तु हमारी कथा में कलावती ने अपने भगवान को दंड देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
    कुछ साल से कलावती नाम देशभर में अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान की तरह मशहूर हो गया है.वैसे तो कलावती महाराष्ट्र के एक अनजाने गांव की अनजानी महिला का नाम है परन्तु कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी ने इस महिला के घर जाकर उसके  नाम को एक ब्रांड नेम में तब्दील कर दिया.अब आलम यह है कि कलावती देश की  गरीब और पिछड़ी महिलाओं का पर्याय बन गयी है.अब तक कांग्रेस के प्रिंस चार्मिंग अर्थात राहुल को भगवान मानने वाली कलावती ने बिहार विधानसभा चुनाव में अपने भगवान राहुल को ही ज़मीन दिखा दी. बिहार की कलावतियों ने राहुल और उनकी पार्टी को ऐसी पटखनी दी कि अब उनके दिमाग में शायद यही गाना घूम रहा होगा कि...हमसे क्या भूल हुई जो इसकी सज़ा हमको मिली. दरअसल राहुल ने बिहार को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बना लिया था.महाराष्ट्र से शुरू हुए उनके ये प्रयोग उत्तरप्रदेश होते हुए बिहार तक जा पहुंचे. महाराष्ट्र में तो चुनाव अभी होने नहीं हैं,उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को आंशिक सफलता मिली. अब इसमें राहुल गाँधी का योगदान कितना था ये तो राजनीतिक विश्लेषण का विषय हो सकता है परन्तु बिहार ने राहुल को/देश को/कलावतियों को/राहुल-राग गाने वाले मीडिया को ऐसा अवसर प्रदान कर दिया जिससे सभी को असलियत का पता चल गया. चुनाव परिणाम आने के पहले तक राग-राहुल के चापलूस पत्रकारों ने राहुल की महिमा का ऐसा समां बाँध दिया था कि लगने लगा था मानो बिहार में अब बिहारवाद नहीं बल्कि राहुलवाद चलेगा परन्तु चुनाव परिणामों ने  दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया. कलावती यानि आम जनता ने राहुल और उनकी विरदावली गाने वालों को ऐसा सबक सिखाया कि वे मीडिया के सामने आने से भी कतराने लगे.
       ईमानदारी से विश्लेषण किया जाए तो इसमें गलती न तो राहुल की है और न ही कलावती(आम जनता) की,वो तो हमारे मीडिया मानुषों ने राहुल-कलावती के रिश्तों का ऐसा महिमामंडन कर दिया था कि वे अपनी असलियत ही भूल गए और मीडिया की भूल-भुलैया को ही वास्तविकता समझने लगे.बस फिर क्या था राहुल के सिपहसालार भी उनके सुर में सुर मिलकर सफलता का राग गाने लगे,लेकिन जब लालूप्रसाद और पासवान जैसे घाघ नेता भी जब कलावती का मूड नहीं समझ पाए तो राजनीति के नौसिखिये राहुल बेचारे कैसे समझ पाते.अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है....अब भी राहुल ज़मीनी राजनीति और राजनीति की ज़मीन का ककहरा सही सही पढ़ ले तो वे कांग्रेस का इंदिरा-युग वापस ला सकते हैं और कलावती भी अपने भगवान से रूठने की बजाय सत्यनारायण की कथा की तरह उनकी शरण में वापस जा सकती है.   

Saturday, November 13, 2010

पदक नहीं दोस्ती का प्रतीक बने एशियाई खेल

चीन के ग्वान्झु शहर में १९ वे एशियाई खेलों  की  रंगारंग शुरुआत के साथ ही  एक बार फिर एशिया के ४५ देशों में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गयी है.जिनमे ६०५ सदस्यीय भारतीय दल भी शामिल है. .इन खेलो में वर्चस्व की लड़ाई को केवल प्रतियोगी नज़र से ही ना देखें बल्कि इन्हें सभी देशों के बीच मित्रवत सम्बन्ध स्थापित करने में   बडी भूमिका के तौर पर देखा जाना चाहिए..खेल सदैव ही दोस्ती प्रगाढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. आज भारत का प्रयास सभी एशियाई देशों के साथ मजबूत सम्बन्ध जोड़ना है. पर क्या केवल भारत का एकल प्रयास काफी है.  इसलिए सभी देशों का यह फ़र्ज़ बनता है कि इन खेलों में खिलाडी भावना का प्रदर्शन ही उनका लक्ष्य ना हो बल्कि  सभी इनके माध्यम से परस्पर सहयोग, सामंजस्य, समर्पण,सौहार्द का वातावरण बना सकते है. आज सभी एशियाई देश अनेक समस्याओं से दोचार हो रहे है. जिनमे प्राकृतिक आपदाओं के साथ आतंकी हमले भी इन देशों की विकास की गति को अवरुद्ध बना रहे है. प्राकृतिक आपदा से तो निपटने में हम सफल हो भी जाते पर वर्तमान में आतंकी  हमलों का तोड़ अभी भी हम नहीं निकल पाए है जहाँ चीन तिब्बत को लेकर परेशान है, कश्मीर को लेकर पाकिस्तान हैरान है.नेपाल मधेशियों और माओवादियों में उलझा है.  इसलिए  जरुरत है मिलकर प्रयास करने की जिसमे केवल वादे करने या सहयोग का आश्वासन ही काफी नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर विकसित देशों को भी सहयोग करने के लिए प्रेरित करे. आज एशियाई देशों की जरुरत है कि वे सभी एक दूसरे के साथ मिलकर खेलों को माध्यम बनाकर दोस्ती के नए अध्याय की इबारत लिखे. इस बारे में खिलाडियों से ज़्यादा जिम्मेदारी नेताओं और नागरिकों की है. हमारे नेता केवल विचारों का आदान प्रदान ही ना करे बल्कि योजनाओ को अमलीजामा पहनाने में भी अग्रणी  भूमिका निभाए. इस तरह के आयोजनों में भाग लेकर एक-दूसरे की भावनाओ का सम्मान करे. बटु इस देशों के नागरिक ये हमारा भी फ़र्ज़ है कि अपने नेताओ की हौसलाफजाई करे ताकि वे नए प्रयासों में निरंतर नए आयाम जोड़े. जैसे भारत ने सभी देशों के बीच राष्ट्रमंडल खेलों के द्वारा इन प्रयासों को एक दिशा दी.अब चीन उनमे एक और अध्याय जोड़ने की ओर अग्रसर है.  हम सभी को उस प्रयास का सम्मान करना चाहिए.और खेल तथा खिलाडी भावना के साथ आगे बढ़ना चाहिए.यही प्रयास हमारी समस्याओं के समाधान का एक उचित तरीका होगा जो सभी को मित्रवत संबंधों की ऐसी डोर बनेगा जिसे कोई भी तोड़ ना पायेगा शायद तब पाकिस्तान भी भारत के इरादों को सही मानकर पुरानी बाते भूलकर नए अध्याय की शुरुआत करेगा तब किसी भी देश को अपनी बात अपनी बात कहने के लिए किसी मध्यस्थ की जरुरत नहीं होगी  इसलिए इन खेल आयोजनों की सफलता को  पदकों की संख्या से ज़्यादा दोस्ती के रिश्तों में मजबूती के रूप में देखना अधिक उचित होगा ...........        

Tuesday, November 2, 2010

दीवाली की खुशियों को बर्बाद मत कीजिये.....

भारत देश त्यौहारों की खान हैं. नववर्ष के प्रारंभ से अगले नववर्ष तक त्यौहार का ही मौसम बना  रहता हैं. त्यौहारों से सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं. त्यौहार सदैव उत्साह और उमंग से मनाना चाहिए. आदिकाल मैं हमारे पूर्वज त्यौहार को पर्यावरण से जोड़कर देखते थे -वृक्षों की पूजा,नदियों की पूजा,यज्ञ, हवन सभी को पर्यावरण से जोड़ा गया.आज त्यौहारों को मनाने में बदलाव आ गया है .पहले दशहरे पर एक जगह रावण जलाते थे पर आज हर गली मोहल्ले में रावण जलने लगे हैं.अब रावण के कद से ज़्यादा मात्रा में पटाखे भी लगाए जाते हैं.  जो पर्यावरण को उतना ही ज़्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं.. पूरे भारतवर्ष में दुर्गा जी की मूर्तियां रखी जाती हैं जो प्लास्टर ऑफ पेरिस,  कृत्रिम रंगों से और रसायनों से बनती हैं..मुंबई में गणेश उत्सव के दौरान भी  मूर्तियों की स्थापना  की जाती हे जिसे बाद में समुद्र में विसर्जित करते हैं.. इसी तरह दुर्गा मूर्तियां भी देश भर की नदियों में विसर्जित की जाती हैं. दोनों ही जल को प्रदूषित करती हैं.देखिये न अभी दिवाली में तीन दिन शेष हैं और पटाखों का शोर अभी से शुरू हो गया है.. दिवाली के दिन तो पटाखों की धमक और धूम धड़ाके से सारा वातावरण  गूंज उठेगा.  जिससे हम ही नहीं सारा प्राणिजगत और वनस्पति तक  प्रभावित होंगे . दिवाली की खुशी क्या इस शोर गुल के बिना पूरी नहीं हो सकती? पुराने समय में दीयों की रौशनी से ही दिवाली की रौनक होती थी. तब ये कीड़ों  को नष्ट कर देते थे क्योंकि दीयों में सरसों का तेल डाला जाता था.सरसों का तेल वातावरण को शुद्ध करता था परन्तु  आज शहरों में फ्लैट वाली लाइफ में न छत अपनी है और न ही ज़मीन  इसलिए दिवाली छोटी होकर घर के अंदर ही सिमट गयी है .अब घर के अंदर ही दीयों को जलाकर  हम "तमसो  मा ज्योतिर्गमय" का सन्देश देते हैं. इस सब के बावजूद हमें दिवाली अवश्य मनाना चाहिए  परन्तु . पटाखों के शोर और धुंएँ से बचाव का प्रयास करना चाहिए. दरअसल पटाखों में जो तत्त्व पाए जाते हे. उनमें 'केडमियम 'होता है जो गुर्दे  खराब कर सकताहै.यह ह्रदय को भी नुकसान पहुंचाता है.'कॉपर' का धुआं सांस लेने में तकलीफ का कारण  बनता है.सल्फर आँख,नाक और त्वचा में जलन पैदा करता है,फास्फोरस पाचनतंत्र और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है,लेड के कारण फेफड़े और गुर्दे का कैंसर  हो सकता हे. अतः हमें पर्यावरण हितेशी  दिवाली  मनाना चाहिए और दूसरों को भी ऐसे ही दिवाली मनाने के लिए प्रेरित  करना  चाहिए  और आनेवाली पीढ़ी को स्वच्छ, स्वस्थ , पर्यावरण देना चाहिए. हम  यह  कामना करते हैं सभी  स्वस्थ,सुरक्षित रहे...... दीप हम सभी के जीवन में सुख, शांति, समृधि का संचार करे. सभी के दिलों से बैर- द्वेष के अंधकार को दूर कर प्यार और अपनेपन की भावना का प्रसार करे. मेरी और से भी दीपावली आप सभी के लिए मंगलमय हो यही शुभकामनायें..........

Monday, November 1, 2010

शहीदों को बख्श दो मेरे भाई...

देश की सुरक्षा में सबसे बड़ा योगदान हमारे सैनिकों का होता है जो हमारे देश की रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं अपनी जान की परवाह किये बिना अपने देश की सुरक्षा में संलग्न रहते हैं आज हम  अगर चैन की सांस ले रहे हैं  तो  इनकी  ही वजह से ये लोग अपने परिवार की चिंता किये बिना अपना फ़र्ज़ निभाते हैं  हमारे देश की सेना  को विश्व की सबसे ताक़त्वर  सेना माना जाता हैं आज हमारी सेना अत्याधुनिक तकनीकी से लेस हैं हमने आज  तक सभी युद्ध जीतकर अपना लोहा सारे विश्व में मनवा लिया हैं  आज जब हम  पीछे मुड़कर देखते हैं तो हमें  अपनी सेना पर गर्व होता हैं हो भी क्यूँ ना जिन वीरों ने  हमें इस विजय के अवसर दिए उन्हें हम सम्मान दे उन्हें अपनी सरखों पर बिठायें ऐसे वीर भी बिरले ही मिलते  धन्य हे ये भारत भूमि जिसने ऐसे वीरों को जन्म दिया इस भूमि ने सदैव वीरों को सर्वोच्च समर्पण का सम्मान दिया हे लेकिन क्या हम भारतवासी इन वीरों को उचित सम्मान देते हे क्या हम उनके बलिदान को याद रखते हैं केवल भारतीय सैनिकों की बात ही नहीं क्या हम लोग आज़ादी के दीवानों के बलिदान को याद करते हैं आज हम केवल उनके बलिदान दिवस या जन्मदिवस पर श्रधांजलि देकर अपना फ़र्ज़ पूरा हुआ यह मानते हे पर ऐसा  नहीं हे हमें उनके बलिदान को जाया नहीं होने देना चाहिए हमें दोनों वीरों सैनिकों और आजादी के वीरों को सम्मान देना चाहिए वैसे वर्तमान में सबसे बड़ा युद्ध कारगिल युद्ध माना  जाता हैं जिसमे अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी इसके   अलावा  आज के समय में आतंकवादी हमलों ने देश की सुरक्षा पर खतरा उजागर कर दिया हे आज हमारे सैनिकों को देश की सीमाओं के साथ साथ इस खतरे से भी दो चार होना पड़ रहा हे हमारी सरकार शहीदों के बलिदान पर उनके लिए अनेक वायदे करती हे  उनके परिवार को नौकरी, पेट्रोल पम्प, उनके बच्चों को मुफ्त शिक्षा, आवास, इन वादों को करके सरकार ये मान  लेती हे कि उनकी जिम्मेदारी पूरी हुई पर क्या ये सुविधायें  उन शहीदों के  परिवारों तक पहुँचती हे ये कोई नहीं जनता ना ही जानने कि कोशिश करता तभी तो इन सुविधाओं के हक़दार कोई और ही बन जाते हे और जिन्हें ये मिलनी चाहिए थी वे तो बिना सहारे के दर दर कि धोकर खाने को मजबूर हो जाते हे उनकी सुध  लेने वाला कोई नहीं होता उनका परिवार अपने सपूत को खोकर केवल असहाय का जीवन जीता हे इस बारे मे मै आपको एक ताज़ा प्रसंग बताती हूँ मुंबई में आदर्श सोसाइटी का जो अभी प्रकरण चल रहा हे वो सोसाइटी कारगिल के वीरों के परिवारों के लिए निर्मित कि गयी हैं पर अब सारा प्रकरण मीडिया में उजागर होने के बाद महाराष्ट्र  के मुख्यमन्त्री को त्यागपत्र देना पड़ा अब वो चाहे जो कहे कि ज़मीन सेना कि नहीं सरकार कि हे पर अब ये तो साफ़ हे कि सरकार ने एक बार फिर हमेशा कि तरह वीरों के साथ सम्मान के बजाय उनका अपमान किया हे क्यूंकि जिन्हें यह आवास मिलने थे उन्हें तो मिले नहीं  बल्कि सरकार के ही होकर रह गए जैसा पेट्रोल पम्प के आवंटन में भी हुआ था  क्या हम अपने वीरों और सेनानियों के लिए इमानदारी से कोई योजना को लागु नहीं कर सकते क्या उनके सम्मान में उनके परिवारों को मिलने वाली सुविधाओं को उनतक नहीं पहुंचा सकते अगर ऐसा हे तो फिर विजय दिवस मनाने की औपचरिकता ही क्यूँ निभाई जाये अगर हम सभी भारतवासियों के दिल में और सरकार के दिल में भी उनके प्रति आदर हे तो ये प्राण करे कि हम पुरे सम्मान के साथ सदैव उनके बलिदान को याद रखेंगे और देश की  रक्षा करनेवालों  के परिवारों की रक्षा हम सभी मिलकर करेंगे एक जागरूक देशवासी होने के नाते हमारा यह फ़र्ज़ हे की हम सभी भी इन कार्यों में ज़्यादा से ज़्यादा सहयोग कर सेना और सैनिकों का सम्मान करे और आनेवाली पीढ़ी को सेना में शामिल होने को प्रेरित................जय हिंद जय भारत
 

सुरंजनी पर आपकी राय